हरियाणा में इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले है। इसके लिए बीजेपी ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। पिछले 15 दिनों के भीतर केंद्रीय ग्रह मंत्री अमित शाह दो बार हरियाणा का दौरा कर चुके है। जिनमें उन्होंने पिछड़े समुदाय के लिए तमाम घोषणाए की हैं। इस बार बीजेपी जाटों को मनाने के मूड नहीं दिख रही। हाल ही में हुए महिला पहलवान आंदोलन, किसान आंदोलन के चलते जाट बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। इसी कारण लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशियों को जाट इलाके में घुसने नहीं दिया था।
बिना जाटों के समर्थन से क्या बीजेपी बना पाएगी सरकार?
रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा में लगभग 30% आबादी ओबीसी समुदाय की है। इसके बाद दूसरे नंबर पर 25% जाट समुदाय और 20% अनुसूचित समुदाय हैं। पिछले 10 वर्षो में गैर जाट मुख्यमंत्री रहे हैं। इस बार कैबिनेट मंडल में भी जाटों को BJP ने जगह नहीं दी। हरियाणा से जिन तीन लोगों को मंत्री पद दिया वो भी जाट नहीं थे। वरिष्ट पत्रकार अजय डीप लाटर का कहना है कि बीजेपी की योजना ये है कि जाट समुदाय को छोड़कर सबको इकठ्ठा कर लिया जाए। बीजेपी का सोचना ये भी है कि हरियाणा के बाकी समुदाय जिनमे- पंजाबी, ब्राह्मण, पिछड़ा वर्ग और बनिया है, अगर वो इनका समर्थन जुटाने में कामयाब रहते हैं तो वो सत्ता में तीसरी बार वापसी कर लेंगे।
जाटों की BJP से नाराजगी..!
जानकारी के मुताबिक, साल 2014 में जाटों का 75 % वोट बीजेपी को मिला था। फिर साल 2019 में 50 % वोट मिला। फिर ऐसा क्या हुआ कि जाटों ने बीजेपी से किनारा कर लिया ? महिला पहलवान आंदोलन और किसान आंदोलन ने जाटों के बीच बीजेपी का ग्राफ गिरा दिया था और साथ ही साथ प्रवेश में गैर जाट सीएम बनाया। ये भी एक जाटों की नाराजगी का बड़ा कारण हो सकता है। बता दें , राज्य में 25% जाट आबादी है। कहा जाता है कि किसी भी सरकार के लिए जाटों को साधकर सरकार बनाना आसान होता है। अब देखना ये होगा कि क्या बिना जाटों के समर्थन के बीजेपी तीसरी बार में सता में बनी रहेगी या फिर किसी और पार्टी का रास्ता साफ़ होगा।