देशभर में दशहरा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माने जाने वाले इस त्योहार पर जहां देशभर में रावण को जलाने की प्रथा है, वहीं कुछ जगह ऐसे भी हैं जहां दशानन यानी रावण की पूजा की जाती है। जी हां, ऐसी ही एक जगह उत्तर प्रदेश के कानपुर में है। यहां बकायदा दशानन के नाम से मंदिर भी है और यह मंदिर साल में एक बार दशहरा के मौके पर ही खुलता है। इस दिन आसपास के भक्त यहां जुटते हैं और विधिवत दशानन की पूजा होती है और उसके बाद प्रसाद का वितरण भी होता है।
दशानन का यह मंदिर कानपुर के शिवाला में है। इसे लेकर यहां स्थानीय लोगों में श्रद्धा का भाव है। ऐसा इसलिए क्योंकि रावण को भगवान राम ने खुद प्रकांड विद्वान कहा था और अंत समय में लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान लेने के लिए भेजा था। वैसे भी कहा जाता है कि रावण अपने समय का बेहद ही प्रकांड विद्वान था। यही वजह है कि इस क्षेत्र के लोग रावण को विद्वान मानते हुए उसकी पूजा करते हैं और अपने लिए ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने की दशानन से कामना करते हैं, आशीर्वाद लेते हैं।
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि सुबह पूजन अर्चन के दौरान बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। जिस तरह से अन्य मंदिरों में देवी देवताओं की पूजा की जाती है, वैसी ही पूजा यहां पर दशानन की की जाती है। रावण की पूजा और उनको धूप दीप दिखाने के बाद लोग जिस तरह से अन्य देवताओं से आशीर्वाद और अपनी मनोकामना मांगते हैं, वैसी ही मनोकामना यहां पर दशानन से मांगते हैं।
हालांकि शाम के समय यहां भी रावण का पुतला दहन करने की परंपरा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान राम ने रावण को मारा था और यह बुराई पर अच्छाई की जीत की सीख है इसलिए यहां भी लोग शाम के समय रावण का पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत की सीख सबको देते हैं। लेकिन सुबह के समय उनकी पूजा ही की जाती है।
यहां एक और मान्यता है कि दशहरे के दिन अगर कोई तेल का दीपक जलाएगा तो उसे रावण का आशीर्वाद मिलता है। रावण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर से लोग यहां पहुंचते हैं। यह मंदिर अपने देश में सिर्फ दो ही जगह पर है। एक नोएडा में है और दूसरा कानपुर में। सुबह से ही यहां पर भक्तों की भीड़ लग जाती है। यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है। इस दौरान शिवाला में मेला भी लगता है। यहां का मेला देशभर में प्रसिद्ध है।